गूंजती सबकी बेसाख्ता हँसी
श्याम बिहारी श्यामल
इल्म-ए-फ़रेब इस हद तक पहुँचाया जा चुका था
चलते-फिरते शख्स को मुर्दा बनाया जा चुका था
चुन-चुन कर बदला जाने लगा एक-एक दिमाग
पैवश्तगी को उसूल काला बुनाया जा चुका था
फटेहाली पर गूंजती सबकी बेसाख्ता हँसी
सच का किरदार ऐसा बनाया जा चुका था
दिन को रात मान लेने पर तैयार पूरी बस्ती
मुआवजा-ए-झूठ-कुबूली बढाया जा चुका था
श्यामल अब तैयार था नायाब नुस्खा-ए-ज़हर भी
निशाने पर समूची आबोहवा को लाया चुका था
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-10-2018) को "ब्लॉग क्या है? " (चर्चा अंक-3119) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'