वाराणसी में इक्कीस अक्तूबर (वर्ष 2018) को दैनिक जागरण का 'डांडिया रास' कार्यक्रम देखकर कैंट क्षेत्र से घर लौटते हुए कथाकार सविता सिंह और श्याम बिहारी श्यामल |
यूं ही क्या यह खारा रुख है
श्याम बिहारी श्यामल
कहाँ कोई बेदाग सुख है
सबका अपना-अपना दुख है
मलाल चांद को अमावस का
जब देखो तो उतरा मुख है
रात टीसती है सूरज को
हर शाम ही मौत सम्मुख है
तड़प रहा समंदर प्यास से
यूं ही क्या यह खारा रुख है
श्यामल दोनों साथ हमारे
तक़लीफ़ कहां या क्या सुख है
क्या बात है ...बहुत ही सुंदर
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