मौत छुपती फिरती है ज़िंदगी से डर कर
श्याम बिहारी श्यामल
जब-जब पीर का पर्वत पिघलता मेरे अंदर
आंखें रोके रखतीं कैसे मुक़म्मल समन्दर
आंखें रोके रखतीं कैसे मुक़म्मल समन्दर
ईंट-पत्थर के मक़ान में उतरती कहाँ गज़ल
हमने सीने में बना रखा है फूलों का घर
हमने सीने में बना रखा है फूलों का घर
ज़िंदादिली को कम करके मत आंकिए ज़नाब
मौत छुपती फिरती है इस ज़िंदगी से डर कर
मौत छुपती फिरती है इस ज़िंदगी से डर कर
हमने देखा बच निकला गुनहगार भी ऐसा
वह मर गया भीतर का शोर चोर-चोर सुन कर
वह मर गया भीतर का शोर चोर-चोर सुन कर
क्या खूब फ़नकारी है चापलूसी भी दोस्तों
घेर कर मार डालते हैं ताली पीट-पीट कर
घेर कर मार डालते हैं ताली पीट-पीट कर
श्यामल जो लोग मिल रहे हैं अक्सर तपाक से
वक़्त पर कैसे निकल लेते हैं नज़रें फेर कर
वक़्त पर कैसे निकल लेते हैं नज़रें फेर कर
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मौत छुपती फिरती है इस ज़िंदगी से डर कर
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