गुल आते ही हैं गुलशन को बना देने नया
श्याम बिहारी श्यामल
श्याम बिहारी श्यामल
क्या देखी-अनदेखी या कैसी कही-अनकही
हमने जो देखी-सुनी वही बस कुछ बात कही
हर फलसफे की दलील अपनी नज़रिया अपना
कभी तो लगे यह और महसूस कभी वह सही
राम अगली कहानी में कृष्ण तो रावण कंस
सच-झूठ की जंग कभी रुकी कहां चलती रही
वही वफा-जफ़ा वही इंसाफी-नाइंसाफी
बदलते रहे किरदार कहानी हर बार वही
किसी का दावा है सूरज निकलता रोज़ नया
कोई दिखा रहा है तारीख़-ओ-खाता-बही
कौन समझाए किसे चाकी की हर चाल नई
हर मुखडा नया कायनात में जो दिखा न कहीं
गुल आते ही हैं गुलशन को बना देने नया
जहां यह हर लम्हा क़तई नहीं वहीं की वहीं
श्यामल अदब की सुनते हैं सब गुनता है कौन
यह एक जिद है कि शायर को कुछ परवाह नहीं
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