संग को संगदिल न होना भारी पड़ा
श्याम बिहारी श्यामल
कैसे असर-ए-अशआर ऐसा बड़ा हो गया
मुर्दा कई दिनों से जो पड़ा था खड़ा हो गया
गज़ल ने बदमिज़ाज़ी पर फेंकी थी एक नज़र
समन्दर काबू हुआ और जमकर कड़ा हो गया
चालाक सयानों ने चाल ऐसी आगे चली
हरदिल अज़ीज़ अब तो यह पाप का घड़ा हो गया
हरदिल अज़ीज़ अब तो यह पाप का घड़ा हो गया
ज़बान से शहद और लफ्ज़ों में ऐसा जादू
देखते-देखते घर-घर में लड़ी-लड़ा हो गया
श्यामल संग को संगदिल न होना भारी पड़ा
शिकश्त से अब वह सामां-ए-क़ब्र गड़ा हो गया
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