फैला खुशरंग चन्दन
श्याम बिहारी श्यामल
नजरें पहुंचा रहीं दूर तक चुम्बन
यूं अब संभव स्पर्श-गुलाब आलिंगन
यूं अब संभव स्पर्श-गुलाब आलिंगन
सांसें बज रहीं यहां सितार की तरह
झोकों पर चढ़ फैला खुशरंग चन्दन
झोकों पर चढ़ फैला खुशरंग चन्दन
आसमां से लगा यह चमाचम हिमालय
लग रहा अक्सर यही हमारा तो मन
पेड़, पंछी, नदी व जीवों की दुनिया
सपना उतर आया है बनकर यह वन
सपना उतर आया है बनकर यह वन
नींद पर मांदल और ख्वाब में बंशी
श्यामल दिन रात गजल अनमोल यह धन
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