श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल 117



कैसे छुअन में सिहरन  

श्याम बिहारी श्यामल 


ढंकता कहां खुला मन
नाकाफ़ी है पैरहन     


कपासी है यह कि कागज़ी   
फरियादी चुप गुम कहन   

ख़ुमार-ए-फ़लसफ़ा क्यों  
धीपाता केवल बदन     

दरिया-ए-आग कैसा  
कैसे छुअन में सिहरन  

बरपी गुलों पर आफत   
चुप क्यों चालाक चमन  

श्यामल लगता क्यूं ऐसा  
दांव पर कीमती सहन  
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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