बहती गंगा में हाथ धोना था
श्याम बिहारी श्यामल
महफूज कहां कोई कोना था
अब तो इसी बात का रोना था
अब तो इसी बात का रोना था
हर चेहरा उनका डरावना था
बदहालात को अब ढोना था
बदहालात को अब ढोना था
क़ाबिज हुए वह कहां-कहां नहीं
उनकी चाँदी उनका सोना था
उनकी चाँदी उनका सोना था
सच पहनते झूठ को जीते थे
तो इंसाफ़ कहां अब होना था
उन्हें पता था रास्ता साफ़ है
बहती गंगा में हाथ धोना था
तो इंसाफ़ कहां अब होना था
उन्हें पता था रास्ता साफ़ है
बहती गंगा में हाथ धोना था
श्यामल लोग कैसे शातिर थे
कुछ भी कहना खुद को खोना था
कुछ भी कहना खुद को खोना था
वाह...बहुत ही सुंदर
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