शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने  

श्याम बिहारी श्यामल 

कुछ शख्स निकले बेशक़ दुनिया को बदलने 
ज़माना लगा उन्हें अपने रंग में रंगने


क़ोशिश-ए-आदम को जिसने आला कहा 
मुरीद उसी बुद्ध की इबादत लगे करने

अकीदत-ओ-इबादत तो ज़ाती यकीं की बात
ज़रूरी हैं अब तो उसूल-ए-इन्सानियत बचने 

ईमान-ओ-मोहब्बत को बचाओ पहले 
बगैर इनके शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने

कारोबार-ओ-सियासत-ए-मज़हब खतरनाक 
श्यामल खराब खेल को लोग लगे हैं समझने
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:


  1. ईमान-ओ-मोहब्बत को बचाओ पहले
    बगैर इनके शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने...वाकई ...वाजिब सोच

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