शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने
श्याम बिहारी श्यामल
कुछ शख्स निकले बेशक़ दुनिया को बदलने
ज़माना लगा उन्हें अपने रंग में रंगने
क़ोशिश-ए-आदम को जिसने आला कहा
मुरीद उसी बुद्ध की इबादत लगे करने
अकीदत-ओ-इबादत तो ज़ाती यकीं की बात
ज़रूरी हैं अब तो उसूल-ए-इन्सानियत बचने
ईमान-ओ-मोहब्बत को बचाओ पहले
बगैर इनके शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने
कारोबार-ओ-सियासत-ए-मज़हब खतरनाक
श्यामल खराब खेल को लोग लगे हैं समझने
जवाब देंहटाएंईमान-ओ-मोहब्बत को बचाओ पहले
बगैर इनके शक़्ल-ए-ज़हां लगेगी बिगड़ने...वाकई ...वाजिब सोच