श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल - 126


  एक मुस्कान बदल सकती है दुनिया  

श्याम बिहारी श्यामल 

  एक बेचैन समंदर बगावत पर अड़ा है   
ज़ेहन के भीतर दूसरा निढाल पड़ा है


साथियो इंतहा है यह तो रंज़-ओ-ग़म की   
कैसे कहें दर्द दोनों में किसका बड़ा है

 बा-खबर हैं कई जिन्हें हर दांव-पेच पता
कुछ कहें वह कैसे मुंह पर ताला जड़ा है

दिल को अभी-अभी जैसे शोलों ने छू लिया 
मुड़ कर देखा बगल में हरसिंगार झड़ा है

सिर पटकना छोड़ साहिल के दिल में तो उतरे 
समंदर को दिखेगा बड़ा बदलाव खड़ा है

श्यामल एक मुस्कान बदल सकती है दुनिया 
जादू का खज़ाना उसके भीतर गड़ा है   
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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