एक मुस्कान बदल सकती है दुनिया
श्याम बिहारी श्यामल
एक बेचैन समंदर बगावत पर अड़ा है
ज़ेहन के भीतर दूसरा निढाल पड़ा है
साथियो इंतहा है यह तो रंज़-ओ-ग़म की
कैसे कहें दर्द दोनों में किसका बड़ा है
बा-खबर हैं कई जिन्हें हर दांव-पेच पता
कुछ कहें वह कैसे मुंह पर ताला जड़ा है
दिल को अभी-अभी जैसे शोलों ने छू लिया
मुड़ कर देखा बगल में हरसिंगार झड़ा है
सिर पटकना छोड़ साहिल के दिल में तो उतरे
समंदर को दिखेगा बड़ा बदलाव खड़ा है
श्यामल एक मुस्कान बदल सकती है दुनिया
जादू का खज़ाना उसके भीतर गड़ा है
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