शिकंजा कसने की किसमें भला हिम्मत थी
श्याम बिहारी श्यामल
सबको कुबूल यहां पोशीदा हक़ीक़त थी
छुपने-छुपाने की अब कहां जरूरत थी
कारनामे, करतूत सब दुनिया के सामने
शिकंजा कसने की किसमें भला हिम्मत थी
चेहरा क्यों न खौफ़नाक कोई बात नहीं
शर्त केवल एक अपनी ऊँची क़ीमत थी
उन्हें लगता दुनिया अब उनकी मुट्ठी में
उन्हें लगता दुनिया अब उनकी मुट्ठी में
कौन बताए यहां हाजत-ए-मरम्मत थी
श्यामल आंखों में झिलमिलाया यह क्या
श्यामल आंखों में झिलमिलाया यह क्या
समझा जिसे तारीफ़ वह सीधी मज़म्मत थी
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