श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 125


सीधी-सी लकीर 

श्याम बिहारी श्यामल 

चुप्पी गहरे उतर कर  बजती है  
सबसे अधिक खामोशी कहती है
  

गुजरता जाता है मंज़र हरेक   
अज़ीज़ों को याद पास रखती है


कभी तो सवाल झोंकती ज़िंदगी 
अक्सर जबकि चुपचाप गुजरती है


क़ायल उसके हम इससे उसे क्या   
गाफिल वह अपनी राह चलती है


श्यामल ज़हां-ए-फलसफ़ा बेदर्द  
सीधी-सी लकीर कहां बनती है 




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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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