आब-ए-ज़माने को धोया भी कर
श्याम बिहारी श्यामल
हंसी चमके और मुस्कान धुलती चले, रोया भी कर
कारोबार-ए-ज़िंदगी चलती रहे, कभी बोया भी कर
कारोबार-ए-ज़िंदगी चलती रहे, कभी बोया भी कर
गलीचा-ए-गुल से तुरंत उठ और नींद की चादर हटा
पलकों पर ताज़े ख्वाब रख, आंखें खोलकर सोया भी कर
भीड़ यह बेशक नहीं है हर वक़्त मुसीबत बहुत बड़ी
पता-ठिकाने फाड़ पुरज़े उड़ा, हुज़ूम में खोया भी कर
वह दरिया वह पत्थर वह परबत, वह पानी और यह आग
पहचान यह ताज़ा रहे, हाथ बढाकर सब टोया भी कर
श्यामल कभी तो आगे बढकर इतनी-सी भी जहमत उठा
श्यामल कभी तो आगे बढकर इतनी-सी भी जहमत उठा
अश्कों को आवाज़ दे, आब-ए-ज़माने को धोया भी कर
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