श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल : कुछ ख़ास कहा न गया


 बेशर्म झूठ यह सहा न गया  

श्याम बिहारी श्यामल 

गुमज़ुबां अब और रहा न गया 
हालांकि कुछ  ख़ास कहा न गया


दिन को रात कह रहे थे ज़नाब 
बेशर्म झूठ यह सहा न गया


ज़हर थी शोखी-ए-दरिया यह
मौजों के साथ अब बहा न गया


मिलने को पहुंचा हुज़ूम-ए-गुल जब
नजराना-ए-खुशबू गहा न गया


श्यामल पड़ोस क्यों  बख्तरबंद था
तीर-ए-नज़र ज़रा भी जहां न गया





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (16-11-2018) को "भारत विभाजन का उद्देश्य क्या था" (चर्चा अंक-3157) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. veerujan.blogspot.com
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com
    vaahgurujio.blogspot.com
    गुमज़ुबां अब और रहा न गया
    हालांकि कुछ ख़ास कहा न गया


    दिन को रात कह रहे थे ज़नाब
    बेशर्म झूठ यह सहा न गया
    मुल्क को तोड़ने की फिर साजिश ,
    मुगदर बिन उठाये रहा न गया। बेहतरीन अशआर जनाब श्यामल साहब के।

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