सदाएं ज़िंदा अब भी उसकी ज़रूर सुनना
श्याम बिहारी श्यामल
एक ज़माने से बिखरे हुए तिनके चुनना
चाहता हूं क्रोशिए से कभी खुद को बुनना
जुलाहा बुनता चादर छलकाता था गागर
सदाएं ज़िंदा अब भी उसकी ज़रूर सुनना
दुनिया को खंगाल कर भी पाया न जा सका
वह बूत-ए-सुकूं अपने भीतर ही ढून्ढना
सबको तोड़ने व बिखेर कर छोड़ने वाले
तय है तेरा अब सबसे दर्दनाक टूटना
श्यामल को पता चल गया है इल्म वह खास
मुमकिन अब शायद तमाम बिखरों का जुड़ना
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