शोलों को जिलाता
श्याम बिहारी श्यामल
बादल में आग है उससे बात कर
फ़ुर्सत में श्यामल से मुलाक़ात कर
क्या कहाँ कैसे क्यों कितना कब जहाँ
सीधे खड़ा हो हक़ से सवालात कर
गुनगुनाता दिल उसके पास अब भी
पास जा निजी मुर्दनी को मात कर
जलाता चराग तूफानों को जगा
उसे ज़ख्मी मिलते दिनभर रातभर
लोग समझते हैं वह भड़काता है
शोलों को जिलाता वह ज़ज़्बात भर
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