ज़हर हज़ार कंठों से मीठे पुकारता था
श्याम बिहारी श्यामल
कहां कौन उसके बारे में क्या नहीं जानता था
ज़हर वह हज़ार कंठों से मीठे पुकारता था
उसके रंग एक से एक और खुशबू ज़ादुई
बचाए रखता बदन को महज़ रूह मारता था
बाज़ार दिन-रात पढता था उसके ही कसीदे
इश्तिहार उसे सबके ज़ेहन में उतारता था
हमारे सामने थी कैसी उलटी हुई दुनिया
ज़हर को जहरीला अब कोई नहीं मानता था
ज़हर को जहरीला अब कोई नहीं मानता था
श्यामल यह बदइल्मी या बेशऊरी ज़माने की
देखें इस ज़हर-जुनूं को इल्म कब तक मारता था
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