हम गज़ल-नज़्म रचें या यूं गुनगुनाएं


हो कोई शाह-ओ-पुरोहित-ओ-इमाम

श्याम बिहारी श्यामल 


किसी को तोहफ़ा न कभी कोई इनाम  
ज़िंदगी पक्का हिसाब-क़िताब का नाम

किसी पर कभी इनायत न ज़रा रियायत 
हो कोई शाह-ओ-पुरोहित-ओ-इमाम 

गज़ब अपनी गिनती अपना ही अंदाज़ 
किसी का भी सफ़र पलक झपकते तमाम 

हम गज़ल-नज़्म रचें या यूं गुनगुनाएं    
सोचिए उसे भी इन सबसे क्या काम

जिसने दिए ताज़-ओ-लाल क़िला श्यामल  
उसे भी मिल न सकी अलग से एक शाम





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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