श्याम बिहारी श्यामल की गज़ल- 124



वक़्त अब हर वक़्त बड़बड़ाता था 

श्याम बिहारी श्यामल

आईना एकदम उल्टा दिखाता था
ज़माना उल्टे पीठ थपथपाता था

जाने कब से चल रहा था फरेब यह

इस पर कौन परदे लटकाता था

किसे न पता कि कहाँ हो रहा खेल

हर शख्स फ़िर क्यों चुप रह जाता था

नहीं बदली बूढे बाघ की चाल

कंगन दिखा शिकार फंसाता था 

कांव-कांव में भला साज़िश कैसी

कौवे को कब कूकना आता था

श्यामल चुप्पी जटिल,  बोलना कठिन 
वक़्त अब हर वक़्त बड़बड़ाता था
Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

1 comments: