वक़्त अब हर वक़्त बड़बड़ाता था
श्याम बिहारी श्यामल
आईना एकदम उल्टा दिखाता था
ज़माना उल्टे पीठ थपथपाता था
जाने कब से चल रहा था फरेब यह
इस पर कौन परदे लटकाता था
किसे न पता कि कहाँ हो रहा खेल
हर शख्स फ़िर क्यों चुप रह जाता था
नहीं बदली बूढे बाघ की चाल
कंगन दिखा शिकार फंसाता था
कांव-कांव में भला साज़िश कैसी
कौवे को कब कूकना आता था
श्यामल चुप्पी जटिल, बोलना कठिन
ज़माना उल्टे पीठ थपथपाता था
जाने कब से चल रहा था फरेब यह
इस पर कौन परदे लटकाता था
किसे न पता कि कहाँ हो रहा खेल
हर शख्स फ़िर क्यों चुप रह जाता था
नहीं बदली बूढे बाघ की चाल
कंगन दिखा शिकार फंसाता था
कांव-कांव में भला साज़िश कैसी
कौवे को कब कूकना आता था
श्यामल चुप्पी जटिल, बोलना कठिन
वक़्त अब हर वक़्त बड़बड़ाता था
वाह क्या बात है ...शुभ दीपावली
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