कैसी हम शक्ल दे पाते थे
श्याम बिहारी श्यामल
जो कंधों से ऊपर उठाये जाते थे
दर्जा-ए-ज़िंदा में वह कहां आते थे
मर चुका था यहां ईमान हर कंधे का
हद-ए-मुर्दा में सब साफ़ दिख जाते थे
खुद को ले दावे करने में वह मशगूल
हालात हर हक़ीक़त सामने लाते थे
ज़मीं निगल रहे थे और आस्मां यह पूरा
देखना था कैसी हम शक्ल दे पाते थे
मनबढ थे बिगडैल थे और बेशर्म भी
श्यामल सारे के सारे आग लगाते थे
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