दौर-ए-फरेब बिछा था सीढी बनकर


चुप्पी चुभी थी मलाल बनकर

श्याम बिहारी श्यामल 

जो कह देते वह कभी करते नहीं थे
जो करना था कभी वह खुलते नहीं थे


क्या तिलिस्म था उनके करने-धरने का
इस किये-धरे पर कभी अड़ते नहीं थे


दुनिया समझ रही थी उनके फ़रेब को
लोग जो क़रीब थे कुछ कहते नहीं थे


दौर-ए-फरेब बिछा था सीढी बनकर
चढते-चढते वह कभी थकते नहीं थे


श्यामल यह चुप्पी चुभी थी मलाल बनकर
उन्हें अफ़सोस कि हम देखते नहीं थे




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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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