सच यही यह बस
श्याम बिहारी श्यामल
जिसे लगती हो लगे यह ग़ज़ल
हमारी यह तो ज़िंदगी असल
अलामात अल्फाज़ मंज़र सब
हर बात-ज़ज़्बात सच दरअसल
बनते हैं अशआर कभी-कभी
हर पल चलती सांसों की पहल
सुनिएगा कभी कान लगा कर
बजती मिलेगी धड़कन पल-पल
हमारे पास कहां फ़नकारी
हम खुद को यहां रखते केवल
जगज़ाहिर नाचीज़ी हमारी
सच यही यह बस अदना श्यामल
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