कहने को बचा ही था क्या
श्याम बिहारी श्यामल
उसूल दरअसल अब दरकिनार था
खुलेआम मक़बूल गुनहगार था
खून सने हाथों वाला आदमी
ज़माने में सबसे असरदार था
क़िरदार-ए-मज़ाक फ़टेहाल वह
सच्चा जो और ईमानदार था
बुलन्दियों पर क़ाबिज़ था कोहरा
अंधेरा भारी रसूखदार था
श्यामल कहने को बचा ही था क्या
ज़हां-ए-अल्फाज़ अब बीमार था
उसूल दरअसल अब दरकिनार था
जवाब देंहटाएंखुलेआम मक़बूल गुनहगार था ....वाह