नक़ाब-ओ-पैरहन बेमतलब थे यहां
श्याम बिहारी श्यामल
ज़ालिमों का कुछ भी पोशीदा था कहां
नक़ाब-ओ-पैरहन बेमतलब थे यहां
खुल कर कह डाले ऐसा तो नहीं कोई
पर हर चेहरा सब कुछ कहता था वहां
देखते ही एक दिन बच्चे चीख उठे
नंगा-नंगा गूंजने लगा तब जहां-तहां
उन्हें पता यह नहीं घाटे का सौदा
खौफ़ खाएगा इसी से सारा ज़हां
श्यामल ताज़ को अब समझ में आया है
क्यों सदियों से हिला नहीं है शाहजहां
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-11-2018) को "बालगीत और बालकविता में भेद" (चर्चा अंक-3155) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी