कहां सुरखाब के पर
श्याम बिहारी श्यामल
अल्फाज़ बेमानी वह कहते तो क्या
ख्वाब आस्मानी थे अब करते तो क्या
गरज-गरज तड़क-तड़क कर जल चुके थे
वह अब बे-पानी थे बरसते तो क्या
वह अब बे-पानी थे बरसते तो क्या
क़्त्लेआम कर रहे हर अंजाम का
खुद ही बे-कहानी थे लिखते तो क्या
अपने होने का हक़ अदा कर न सके
वह बे-मुहानी खुद थे चलते तो क्या
श्यामल के पास कहां सुरखाब के पर
अश'आर रुहानी थे बिखरते तो क्या
क्या बात है 👌👌
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