अब साथ परवाज
श्याम बिहारी श्यामल
सहेज कर महज़ दो अल्फाज़ नफा नुकसान
तंग कर लिया है उसने अपना आसमान
तालीम-ओ-ज़ाहिली की अब साथ परवाज
ताज्जुब क्या चिरागों से ही खतरा-ए-जान
ज़ुबां पर गर बस गया हो ज़ायक़ा-ए-लहू
कठिन है आदमखोर को बनाना इंसान
स्वादों की सतरंगी लंबी चादर लहरा
ले रहा है कब से वह हमारा इम्तिहान
किसके निशाने पर नहीं यह अदना श्यामल
कौन कब तक खपाता है इसमें अपनी जान
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