श्याम बिहारी श्यामल की ग़ज़ल- 128



अब साथ परवाज 

श्याम बिहारी श्यामल 

सहेज कर महज़ दो अल्फाज़ नफा नुकसान 
तंग कर लिया है उसने अपना आसमान

तालीम-ओ-ज़ाहिली की अब साथ परवाज
ताज्जुब क्या चिरागों से ही खतरा-ए-जान

ज़ुबां पर गर बस गया हो ज़ायक़ा-ए-लहू  
कठिन है आदमखोर को बनाना इंसान

स्वादों की सतरंगी लंबी चादर लहरा  
ले रहा है कब से  वह हमारा इम्तिहान

किसके निशाने पर नहीं  यह अदना श्यामल  
कौन कब तक खपाता है इसमें अपनी जान
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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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