जो करना हो कर ले घटा जो काली घिरी है
श्याम बिहारी श्यामल
सूरत-ए-हाल-ए-ज़हां कैसी यह पास मिरी है
स्याह-ओ-सन्नाटे की जैसे बिजली-सी गिरी है
स्याह-ओ-सन्नाटे की जैसे बिजली-सी गिरी है
अंधेरा अंधेरे में है क़ामयाब हो कैसे
हमारे पास जो दरींचा-ए-अदब-ओ-शीरी है
ज़मीं पर उतर कर साथ चल रहा माहताब मेरे
अब जो करना हो कर ले घटा जो काली घिरी है
सामने न दिखता हो तब भी भीतर बहता रहता
दिल जो दरिया है चंगा मन भी गंगा-तीरी है
एक अदना श्यामल पर मुंह उठाए तोपें कई
किस ज़माने से कितनी आंखों में क्यों किरकिरी है
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