दरियाफ्त करूं मैं अपनी जगह हूं कि नहीं


पल-पल बदलते दिख रहे हैं चेहरे 

श्याम बिहारी श्यामल 

सब कुछ उलट-पलट दे यह बवंडर न कहीं 
दरियाफ्त करूं मैं अपनी जगह हूं कि नहीं

ज़रा-सी तेज आवाज़ जब आती है अब
शक़ जाग जाता है यह धमाका तो नहीं

पल-पल बदलते दिख रहे हैं चेहरे यूं 
बहरुपियों को मुखौटे ज़रूरी ही नहीं

इस बीच इतना कुछ अनाप-शनाप देखा
अब तो गौर करते हैं क्या गलत क्या सही

श्यामल बनकर जो शख्स आया था मिलने
पूछ लिया वह हंसता-रोता है कि नहीं









Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें