मौज़ूदगी यह किसी को क्यों हज़म नहीं होती



ज़ेरे आतिश सोना, पर चश्म नम नहीं  

श्याम बिहारी श्यामल 

मौज़ूदगी यह किसी को क्यों हज़म नहीं होती   
दुश्वारी है कि चुनांचे कभी कम नहीं होती 

ग़ज़ल-ओ-नग्मात सभी उन्हें पसंद हैं बहुत 
उनकी शिक़ायत लेकिन कभी अदम नहीं होती 

पकड़ में भी आती है अक्सर नक़लियत उनकी 
इसके बाद भी उन्हें कभी शरम नहीं होती 

कुछ है जो हमेशा ही टूटता रहता भीतर 
तकलीफ़ अब बेशक़ हमको हरदम नहीं होती 

श्यामल हो तो होने की क़ीमत भी चुका मियां 
ज़ेरे आतिश सोना, पर चश्म नम नहीं होती 

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चुनांचे = इसलिए 
अदम = शून्य 
नक़लियत = नक़लीपन 
चश्म = आंख 





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. ग़ज़ल-ओ-नग्मात सभी उन्हें पसंद हैं बहुत
    उनकी शिक़ायत लेकिन कभी अदम नहीं होती …
    क्या बात

    जवाब देंहटाएं