आतिश-ए-गुल यह जला दे न कहीं सारा ज़हां


बेचैनी जो उस तरह बेचैन भी नहीं 

श्याम बिहारी श्यामल 

जो है सो यह रौनक-ए-अंदाज़-ओ-अदा है 
दिखे जो भी दरहक़ीक़त यही ग़ज़लकदा है 

एक बेचैनी जो उस तरह बेचैन भी नहीं 
तार सांसों के छूता दर्द यह अलहदा है  

दूर-दूर तक कहीं कोई परिंदा यहां नहीं 
चहचहाहटें यह किस बेखुदी की सदा है 

आतिश-ए-गुल यह जला दे न कहीं सारा ज़हां 
दिखता है उन्हें गाछ गुलाबों से लदा है 

श्यामल तेज़ कर अभी और ताल्लुक़-ए-अल्फाज़ 
सफ्ह माक़ूल-ए-नग्म यह निहायत सफा है





Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें