ताकतीं दीवारें स्नेह-ममत्व से भर कर
श्याम बिहारी श्यामल
बेशक़ ईंट-पत्थरों का ही हमारा भी घर
पर फिक्रमंद रहता बहुत आजकल अक्सर
सोते-जागते हमें जब देख ले परेशान
वज़ह पूछने लगता हाथ फेर कर सिर पर
छत से टपकती माई-बाबूजी की आहट
ताकतीं दीवारें स्नेह-ममत्व से भर कर
निकलते वक़्त मुंडेर करती है खबरदार
कैसे बखूबी वाकिफ क्या चल रहा बाहर
श्यामल यह आशियां या बचपन का वह आँचल
लौटते ही छुपा लेता आगोश में ले कर
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