नग्म-ओ-नज़्म है खामोशी



ज़न्‍नत-ए-ग़ज़ल तो यहीं

श्‍याम बिहारी श्‍यामल

दु:ख जब कभी यहां आता है
यूं ही नहीं लौट जाता है  

गोकि रस-ओ-रंगत सब ज़िंदा 
रंग शिकस्‍त यहीं खाता है

यह ज़न्‍नत-ए-ग़ज़ल तो यहीं
कू-ए-अशआर जगाता है

नग्म-ओ-नज़्म है खामोशी
गम भला कहां बच पाता है 

श्‍यामल कारवां-ए-फ़िक्र क्या 
नामुराद कब टिक पाता है






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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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