मंज़र कर रहे आगाह क़ामयाबी यह खतरेजां न बन जाए


जुनूं-ए-फ़तह-ए-क़ायनात खतरनाक़

श्याम बिहारी श्यामल 

तारीख़ भी ताज्जुब नहीं नई तरक्कियों से हैरां हो जाए
खतरा लेकिन यह भी कहीं शागीर्द-ए-मशीं न इंसां हो जाए

बेशक़ मुट्ठी में आज दुनिया चप्पा-चप्पा आंखों के सामने
डर यह फिर क्यों गुलशन-ए-ज़ज़्बात हमारा बियाबां न हो जाए

चांद बनाओ सूरज बनाओ चाहो तो नई धरती भी गढ़ लो
ख्याल यह रहे वज़ूद-ए-आदम तबाह-ओ-परेशां न हो जाए

धुन-ए-तरक्क़ी ठीक पर जुनूं-ए-फ़तह-ए-क़ायनात खतरनाक़
मंज़र कर रहे आगाह क़ामयाबी यह खतरेजां न बन जाए

श्यामल दिमाग-ए-इंसां का लोहा मानने लगी क़ुदरत अब तो
सनद रहे अब ज़िंदगी को बेलगामी यह पशेमां न कर जाए






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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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