दूर खड़ा ताक रहा सहमा हुआ ज़वाब
श्याम बिहारी श्यामल
मैं पन्ने पलटता हूं मुझे पढ़ती है क़िताब
मेरी ही आंखों से मुझे देख रहा है ख्वाब
क्या खूब है नज़ारा-ए-तरक्क़ी अब सामने
हमें भी क़ैद कर चुकी फेहरिस्त-ए-असबाब
बदल चुका यहां कुछ इस क़दर मिजाज़-ए-सवाल
बहुत दूर खड़ा ताक रहा सहमा हुआ ज़वाब
लापता-सी आंखें ज़ख़्मी यह मन गुमशुदा-सा
आवारा वक़्त की गुमज़ुबानी भी लाज़वाब
श्यामल कहें तो क्या और चुप रह लें तो कैसे
किस चेहरे पर नहीं कायम अब निशां-ए-दाब
बदल चुका यहां कुछ इस क़दर मिजाज़-ए-सवाल
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