संग-ए-राह भूलें न हमें दिली अर्ज़ है


मुखड़ा अनजाना सामने किसका

श्याम बिहारी श्यामल 

सबक-ए-घाटा तो फायदे में दर्ज़ है
शुक्र-ए-अदायगी अब हमारा फ़र्ज़ है 

क़दम-क़दम देते रहे जो चोट पर चोट
यह सलूक उनका बेशक़ हम पर क़र्ज़ है

ठेस-ओ -ठोकर ने किए ग़ज़ब एहसान 
संग-ए-राह भूलें न हमें दिली अर्ज़ है

मौके का रंग खूब पहचानती दुनिया  
किसे न पता ज़माना कैसा खुदगर्ज़ है 

शाबाशियों ने जब भी छुआ गुमां बनकर 
तज़ुर्बा कह गया तारीफ़ बड़ा मर्ज़ है   

श्यामल मुखड़ा अनजाना सामने किसका 
यह दर्पण है या ग़ज़ल ज़िन्दगी ब-तर्ज़ है 

   
Share on Google Plus

About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें