मुखड़ा अनजाना सामने किसका
श्याम बिहारी श्यामल
सबक-ए-घाटा तो फायदे में दर्ज़ है
शुक्र-ए-अदायगी अब हमारा फ़र्ज़ है
क़दम-क़दम देते रहे जो चोट पर चोट
यह सलूक उनका बेशक़ हम पर क़र्ज़ है
ठेस-ओ -ठोकर ने किए ग़ज़ब एहसान
संग-ए-राह भूलें न हमें दिली अर्ज़ है
मौके का रंग खूब पहचानती दुनिया
किसे न पता ज़माना कैसा खुदगर्ज़ है
शाबाशियों ने जब भी छुआ गुमां बनकर
तज़ुर्बा कह गया तारीफ़ बड़ा मर्ज़ है
श्यामल मुखड़ा अनजाना सामने किसका
यह दर्पण है या ग़ज़ल ज़िन्दगी ब-तर्ज़ है
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