अब जो जीत रहे थे सब सच्चे नहीं थे
श्याम बिहारी श्यामल
मंज़र-ए-हालात बहुत अच्छे नहीं थे
अब जो जीत रहे थे सब सच्चे नहीं थे
बुलंदियों के आस-पास थी भीड़ भारी
कौन कह पाता यहां भी टुच्चे नहीं थे
बार-बार गूँज रहा था ऐलान उल्टा
फेहरिश्त में क्या सचमुच लुच्चे नहीं थे
सामने हवा में उड़ने लगीं थीं धज्जियां
हैरत है यहां-वहां परखच्चे नहीं थे
खेल था कि एकदम रुकने का नाम न ले
खिलौनों के साथ जो थे बच्चे नहीं थे
श्यामल को जो कर देना चाह रहे हवा
खिलाड़ी उनमें यहां अब कच्चे नहीं थे
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