चौपाये छकड़ों से क्यों इलाके खूब बिदकते हैं
श्याम बिहारी श्यामल
पैदल बढ़ने पर दुकां-मकां साथ चलने लगते हैं
दिल को जोड़ लेते और बतियाने को मचलते हैं
रफ्तार तोड़ देती है उम्मीद-ए-रिश्ता सारी
गाड़ी को देखते सभी पीछे भागने लगते हैं
चश्म-ए-इमारत कैसे चलते दो पाँवों पर फिदा
चौपाये छकड़ों से क्यों इलाके खूब बिदकते हैं
उन्हें लगता ज़िंदा है शख्स तो होगा ज़हीन भी
सोचिए इस भरोसे को हम मुकाम क्या बख्शते हैं
श्यामल यह अहमियत-ए-ज़ज़्बात-ए-कुनबा नायाब
लोग ऐसे हैं जो इतर कुछ और नहीं समझते हैं
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दिल को जोड़ लेते और बतियाने को मचलते हैं
...गजब