हम कहां से चले और पहुंचे यहां तक
श्याम बिहारी श्यामल
हमें क्या-क्या न दिया और लिया कितना कम
ज़िंदगी इस दरियादिली के मुरीद हैं हम
हम कहां से चले और पहुंचे यहां तक
जब भी सोचा किया है आंखें हो गयीं नम
तंग किया कई बार ख्वाहिशों ने बेशक़
अहसास-ए-सच ने तुरंत जगाया हरदम
छोटा ही पर मुझे अपना एक क़द दिया
और बख्श दी अपनी एक सरहद चमाचम
साथ-साथ मयस्सर नज़र-ओ-नज़रिया यूं
श्यामल के हिस्से नहीं है अब कोई भरम
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