शायद ही कोई राज़-ए-ज़हां पोशीदा रह जाएगा
श्याम बिहारी श्यामल
हमारे बनाए चांद-सूरज आसमां जब चमकाएगा
अफ़सोस कोई खूबसूरत भरम भी कहां बच पाएगा
क़ायनात को भी समझ में आ रही होगी यह सब अब तो
दिमाग-ए-आदम ऊंचा ही ऊंचा परचम लहराएगा
ज़ुनूं-ओ-ज़िद-ए-इल्म-ए-इंसां अब तो खालिस बेलगाम
शायद ही कोई राज़-ए-ज़हां पोशीदा रह जाएगा
इसी बीच आगे आ दबी जुबां पूछती ज़िंदगी हमसे
ज़नाब इस्तक़बाल-ए-इंसानियत कहां नज़र आएगा
श्यामल दौर-ए-फतह हमारा यह ज़ख़्मी है सवालों से
हम खुश हों जाएं या कि हों मायूस कौन यह बताएगा
हमारे बनाए चांद-सूरज आसमां जब चमकाएगा
जवाब देंहटाएंअफ़सोस कोई खूबसूरत भरम भी कहां बच पाएगा
...वाह ! क्या खूब