दबी जुबां पूछती ज़िंदगी हमसे


शायद ही कोई राज़-ए-ज़हां पोशीदा रह जाएगा 

श्याम बिहारी श्यामल 

हमारे बनाए चांद-सूरज आसमां जब चमकाएगा  
अफ़सोस कोई खूबसूरत भरम भी कहां बच पाएगा 

क़ायनात को भी समझ में आ रही होगी यह सब अब तो 
दिमाग-ए-आदम ऊंचा ही ऊंचा परचम लहराएगा 

ज़ुनूं-ओ-ज़िद-ए-इल्म-ए-इंसां अब तो खालिस बेलगाम 
शायद ही कोई राज़-ए-ज़हां पोशीदा रह जाएगा

इसी बीच आगे आ दबी जुबां पूछती ज़िंदगी हमसे 
ज़नाब इस्तक़बाल-ए-इंसानियत कहां नज़र आएगा 

श्यामल दौर-ए-फतह हमारा यह ज़ख़्मी है सवालों से   
हम खुश हों जाएं या कि हों मायूस कौन यह बताएगा



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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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1 comments:

  1. हमारे बनाए चांद-सूरज आसमां जब चमकाएगा
    अफ़सोस कोई खूबसूरत भरम भी कहां बच पाएगा
    ...वाह ! क्या खूब

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