मुर्दे कुछ इस क़दर मुफीद थे माक़ूल थे


यह दौर कैसे बेज़ार इस तरह

श्याम बिहारी श्यामल 

हर महक़मे को दिल-ओ-जां से कुबूल थे
मुर्दे कुछ इस क़दर मुफीद थे माक़ूल थे

कैसे चलते-फिरते थे ज़िन्दों की तरह

ज़माने की साज़िश थे या कोई भूल थे

कभी कुछ तो कभी कुछ कहने व करने में

सुबूत-ए-फरेब वह या लाश-ए-उसूल थे

उन्हें ठीक से पता नुस्खा- ए-ज़िंदगी

सांसत में थे जितने भी गुलशन-ओ-गुल थे

श्यामल यह दौर कैसे बेज़ार इस तरह

ईमां-ओ-अकीदत सब के सब अब धूल थे





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About Shyam Bihari Shyamal

Chief Sub-Editor at Dainik Jagaran, Poet, the writer of Agnipurush and Dhapel.
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