दरिया बिना पानी का था परबत हिला-डुला
श्याम बिहारी श्यामल
पत्थर पर उगा था अब तक है खिला-खिला
अकेला छोड़ता कहां है कभी यह काफिला
हर लम्हा चमकता चांद-सूरज की तरह
बेहद गुलज़ार रहता है यादों का टीला
चौंकता कोई तो कुछ गाफिल अभी तलक
जाने कब से सहमा है नायाब लाल किला
आंखों में तूफां जुबां पर चुप्पी गहरी
परेशां-सा दिखा है जो भी शख्स यहाँ मिला
श्यामल खेल वक़्त का या महज़ इत्तिफाक
दरिया बिना पानी का था परबत हिला-डुला
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-01-2019) को "सरदी ने रंग जमाया" (चर्चा अंक-3218) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'