झूठ झूठ है यह भी एक सच
श्याम बिहारी श्यामल
झूठ झूठ है यह भी एक सच है किसे इन्कार है
चुनांचे सच और झूठ का झगड़ा ही बेकार है
ज़फ़ा-ओ-वफ़ा-ओ-हिक़ारत जो भी पास आ छू रहा
हरेक अहसास-ए-दिल केवल औ' केवल प्यार है
ठेस-ओ-ठोकर भी तो आखिर अहसास-ए-छुअन ही
कभी आह-ओह कभी अहा सब किसके उद्गार हैं
ज़िंदगी को क़ुबूल कहां कोई ढांचा कोई खांचा
वह तो हर लम्हा नई एक बहती हुई धार है
श्यामल आंखों पर रखें क्यों टिकाकर चश्मा पुराना
नज़र को हर वक़्त नये नज़रिये का इंतजार है
ज़िंदगी को क़ुबूल कहां कोई ढांचा कोई खांचा
जवाब देंहटाएंवह तो हर लम्हा नई एक बहती हुई धार है ...वाह
:)
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-02-2019) को "ब्लाॅग लिखने से बढ़िया कुछ नहीं..." (चर्चा अंक-3234)) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद
हटाएं