किस अव्वल की तलाश
श्याम बिहारी श्यामल
दुनिया में अरबों लोग हैं चेहरे अलग सब
क़ुदरत इतने अंदाज़ गढ़ती है कैसे-कब
आंखें आंखों जैसी नाक यह नाक की तरह
कान भी कान की मानिंद औ' लब जैसे लब
फिर भी कैसे हर शक्ल है दूसरी से भिन्न
बताए सामने आ दानिशमंद कोई अब
मुखड़ों का जगज़ाहिर यह जो पक्का अलगपन
ज़ाहिर हो कैसे लफ़्ज़ों में कहां कोई ढब
श्यामल आमद-ए-नई शक्ल हर लम्हा यहां
किस अव्वल की तलाश में मशगूल अपना रब
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