चादर यह बड़ी नहीं पर शफ्फाक ग़ज़ब
श्याम बिहारी श्यामल
हक़-ए-सुखनवरी यहां यूं हम अदा करते हैं
आईना दिखाते हैं खुद पर नज़र रखते हैं
आस्मां-ओ-समंदर हमसे मिलने को बेताब
कुछ तो है कि सब मेरे तंज़ पर भी मरते हैं
हमें ठीक से पता कलम यह छोटी है मेरी
यह भी इल्हाम क्या उसूल हमारे बनते हैं
चमन-ए-ग़ालिब-ओ-मीर यह ज़हां-ए-अल्फाज़
अपनी तासीर-ए-विरासत खूब समझते हैं
श्यामल चादर यह बड़ी नहीं पर शफ्फाक ग़ज़ब
उतरने को यहां चांद-तारे भी तरसते हैं
जवाब देंहटाएंआस्मां-ओ-समंदर हमसे मिलने को बेताब
कुछ तो है कि सब मेरे तंज़ पर भी मरते हैं
....क्या बात क्या बात