नामवर अमर हैं, वह सदा हमारे साथ रहेंगे
नामवरमय है हिंदी साहित्य
यह नामवरमय ही रहेगा
हिंदी साहित्य के शलाका पुरुष डा. नामवर सिंह ने अब से कुछ घंटे पहले (१९ फ़रवरी' २०१९, देर रात ११ बजे के बाद ) दिल्ली में अंतिम सांस ली. वह कुछ समय से काफी अस्वस्थ चल रहे थे. उनका महाप्रस्थान हिंदी साहित्य पर वज्रपात की तरह है. उनके रूप में हमारी भाषा ने एक ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व देखा जिसने देश-दुनिया में साहित्य के विमर्श को केन्द्रीय गाम्भीर्य और आकर्षण से विभूषित किया. हिंदी साहित्य के परंपरा-परिदृश्य के जानकार अकेले उनमें एक साथ कई महान व्यक्तित्वों की झलक पाकर अघा उठते थे. उनमें हिंदी आलोचना के कुलश्रेष्ठ रामचंद्र शुक्ल के आचार्यत्व, कथासम्राट प्रेमचंद की प्रतिबद्धता, महाकवि जयशंकर प्रसाद के पांडित्य और उनके अपने गुरु हजारीप्रसाद द्विवेदी की तार्किकता के दर्शन किये जा सकते थे.
यह संयोग ही है कि देर रात फेसबुक पर कुछ मित्रों के स्टेटस से जब नामवर जी के महाप्रस्थान की ह्रदय-विदारक सूचना का पता चला उससे कुछ ही देर पहले उनके ही शहर बनारस में उन्हें हम याद कर रहे थे..
संयोग यह भी कि नामवर जी का यह स्मरण उनके प्रिय रचनाकार महाकवि जयशंकर प्रसाद के गृह-परिसर में हो रहा था! संस्मरण सुनाने वाले कोई और नहीं, स्वयं महाकवि के बड़े पौत्र किरणशंकर प्रसाद!
बात-बात में मैंने चर्चा की कि नामवर जी जब अपने जीवन-यात्रा की बात करते हैं तो शुरुआत महाकवि प्रसाद की इन पंक्तियों से ही करते हैं '..मिला कहां वह सुख जिसका मैं स्वप्न देख कर जाग गया ..आलिंगन में आते मुसक्या कर जो भाग गया..'
चर्चा महाकवि के छोटे पौत्र मित्रवर महाशंकर जी के कमरे में चल रही थी. पास ही वह और बगल में उनकी श्रीमती जी के साथ सविता जी भी मौजूद.
किरणशंकर जी ने विस्तार से नामवर जी से अपनी भेंट और प्रसाद-प्रसंग (इस पर चर्चा फिर कभी) पर हुई बातों का ज़िक्र किया ..हमें क्या पता था इस रूप में उन्हें नामवर जी को उनका नगर बनारस और प्रसाद-परिसर उन्हें विशिष्ट रूप में स्मरण कर रहा था ..अश्रुपूरित श्रद्धांजलि आचार्य-प्रवर..
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (21-02-2019) को "हिंदी साहित्य पर वज्रपात-शत-शत नमन" (चर्चा अंक-3254) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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देश के अमर शहीदों और हिन्दी साहित्य के महान आलोचक डॉ. नामवर सिंह को भावभीनी श्रद्धांजलि
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'