रू-ब-रू नहीं होने से बढ़ रहा भरम
श्याम बिहारी श्यामल
इतनी-सी इनायत तो मुझ पर अता कर
ज़िंदगी बेसाख्ता तू हमसे मिला कर
हमें देख राह बदले यह अच्छा नहीं
गांठें खोल औ' कसे मन को ढीला कर
अब और न कतरा कभी सामने तो आ
गिले-शिक़वे चाहे जी भर के किया कर
रू-ब-रू नहीं होने से बढ़ रहा भरम
तशरीफ़ फरमा इस दुनिया को जता कर
श्यामल उन्हें जो शोशे उड़ा रहे हैं
वक़्त देगा ज़वाब सच्चाई दिखा कर
हमें देख राह बदले यह अच्छा नहीं
जवाब देंहटाएंगांठें खोल औ' कसे मन को ढीला कर
वाह, क्या बात है👌👌 लाजवाब