कैसी यहां दरपेश पहेली
श्याम बिहारी श्यामल
हक़ीक़त-ए-वक़्त-ए-सवालात अज़ीब घड़ी थी
अंगुली उठी एक थी चार अपनी ओर मुड़ी थी
उससे ज़वाब मांगें या पहले खंगालें खुद को
कैसी यहां दरपेश पहेली जो मुश्किल बड़ी थी
ईमां था भरोसा था सुकूं-ओ-यकीं भी सामने
एक मुक़म्मल क़तार थी सवाल जो बनी खड़ी थी
सांप सुंघ गया दोस्तो अब तो मुक़म्मल वज़ूद को
आंखें नम थीं गुम थीं ताउम्र जो खुद से लड़ी थीं
श्यामल काले बादल काबिज़ थे आस्मां-ए-ज़ेहन
अश्क़ छलके औ' अब तो सावन-भादों की झड़ी थी
जवाब देंहटाएंईमां था भरोसा था सुकूं-ओ-यकीं भी सामने
एक मुक़म्मल क़तार थी सवाल जो बनी खड़ी थी ...वाह 👌👌गजब