खांचा नहीं खींचा कोई फ़र्क न किया
श्याम बिहारी श्यामल
धुंध में गुम आज हिंदी का आंगन-घर
विदा हो रहे अनुपम अनोखे नामवर
दिल रो रहा हम कभी फिर मिल न सकेंगे
तर्क दिलासा देता नामवर अब अमर
बनारस का बेटा अदब का लाल कमाल
मुरीदों की आँखों से अश्क़ झर-झर-झर
खांचा नहीं खींचा कोई फ़र्क न किया
पहचान उसे बख्शी जो मिला बेहतर
रेणु, मुक्तिबोध, निर्मल वर्मा व धूमिल
उन्हीं के तो गढ़े-बनाए ऊंचे शिखर
चदरिया जस की तस वह भी धरता रहा
काशी का यह एक और वही बुनकर
श्यामल खुश रह बुज़ुर्ग-ए-अदब से जुड़े
नामवर की इनायत रही तेरे भी ऊपर
खांचा नहीं खींचा कोई फ़र्क न किया
जवाब देंहटाएंपहचान उसे बख्शी जो मिला बेहतर
...आदर सहित नमन नामवर जी 🙏 रउरा हमेशा याद आइम 💐