ज़रा भी कम किसी को कहां क़ुबूल यहां
श्याम बिहारी श्यामल
मक़सद महज़ हालात हक़ में करना था
चुनांचे सच सबका अपना-अपना था
ज़रा भी कम किसी को कहां क़ुबूल यहां
बेअदब-ओ-बेकाबू हर सपना था
अदब-ए-कतार की कहां अब बात कहीं
सबको आगे ही आगे रहना था
ऊंचे-ऊंचे बोल व जुमले गोल-गोल
बोलना कुछ भी औ' कुछ भी करना था
श्यामल पूरा दौर क्यों इस क़दर पागल
बे-पानी पानी में पानी भरना था
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