किसे दिखते नहीं सच के पाँवों के छाले
श्याम बिहारी श्यामल
रोशनी को यह चुनौती वज़ूद बचा ले
सूरज डुबो दुनिया अंधेरे के हवाले
क्या है यह खेल तेरा कुदरत बता मुझे
शायर क्यों न अपना अब यह सवाल उछाले
फरेब तब से अब तक गलीचे पर कैसे
किसे दिखते नहीं सच के पाँवों के छाले
कब तक भुलावे में हम मन को बहलाएं
ऐसे में कैसे कोई खुद को संभाले
श्यामल को सुकून कई गले तर कर रहा
समंदर जरा अपनी ही तो प्यास बुझा ले
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कवि प्रदीप और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बंधुवर
हटाएंपूरा अधिकार है शायर को अपना सवाल उछालने का -लोगों के कान तकबात तो पहुँचेगी .
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
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